एशियन गेम्स 2018 में महज 16 साल की उम्र में यूं ही नहीं सोना जीतने में सफल रहे सौरभ चौधरी. कम उम्र में कठिन मेहनत और संघर्षों के दम पर सौरभ को यह मुकाम हासिल हुआ.42 साल के जापानी निशानेबाज तोमोयुकी मतसुदा को हराकर देश के लिए सोना जीतने के बाद यह युवा खिलाड़ी सुर्खियों में है. फाइनल में जापानी खिलाड़ी मतसुदा को भी हार दिया, जो कि 2010 में विश्व चैंपियन रहे हैं.
सौरभ चौधरी की पारिवारिक पृष्ठिभूमि की बात करें तो मेरठ के कलानी गांव के रहने वाले हैं. किसान के बेटे सौरभ इस वक्त 11 वीं की पढ़ाई भी करते हैं.जब कभी निशानेबाजी की ट्रेनिंग से फुर्सत मिलती है तो सौरभ पिता के साथ खेती में भी जुट जाते हैं. कलीना गांव में ही सौरभ के पिता के पास खेती लायक जमीन है. सौरभ के मुताबिक खेत में काम करना उन्हें पसंद हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस कदर सौरभ का अपनी माटी से जुड़ाव है. अपने पहले ही एशियन गेम्स में अच्छे स्कोर के साथ सोना जीतकर सौरभ चौधरी ने इतिहास रच दिया है. इस उम्र में एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले वह पहले भारतीय खिलाड़ी हैं. उनसे पहले 1994 के एशियन गेम्स में जसपाल राणा 17 साल की उम्र में सोना जीत चुके हैं.
यूं जुड़ा शूटिंग से नाताः सौरभ चौधरी पढ़ाई-लिखाई में कच्चे निकले तो खुद को शूटिंग से जोड़ लिए.उनके फैसले को घरवालों से भी सपोर्ट मिला.मेरठ से 50 किमी दूर बागपत के सेंटर जाकर ट्रेनिंग लेनी शुरू की.मेहनत रंग लाई तो महज 16 वर्ष की उम्र में ही भारतीय टीम के लिए चयन हो गया तो परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं लगा. सिर्फ तीन साल पहले निशानेबाजी शुरू करने वाले सौरभ चौधरी ने पीटीआई से कहा-मुझे कोई दबाव महसूस नहीं हुआ. शुरूआत में मैं नर्वस था लेकिन फिर संयम रखकर खेला.यह मेरा पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट है और पदक जीतकर अच्छा लग रहा है।सौरभ ने बागपत के पास बेनोली में अमित शेरोन अकादमी में निशानेबाजी के गुर सीखे.
Source: sports.ndtv.com
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